भारतीय प्रेस का मुक्तिदाता मेटकाफ
( Metcalf, the liberator of the Indian press)
William batting के गवर्नर जनरल के रूप में कार्य करते समय Matecalf ने ही सदा स्वतंत्र प्रेस का समर्थन किया था 1835 का वर्ष ब्रिटिश सत्ता के समय भारत में पत्रकारिता की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय है इस वर्ष मीट को भारत का गवर्नर जनरल बना और उसने प्रेस को स्वतंत्र करने की दिशा में विशेष पहल की डॉक्टर रामरतन भटनागर दिखते हैं भारतीय पत्रकारिता की पूरे इतिहास में पत्रों की स्वतंत्रता के लिए अथक परिश्रम करने वाला मेट पौकी समान दूसरा कोई अंग्रेज व्यक्ति नहीं मिलेगा वह विधानसभा के एक सदस्य थे और उन्होंने बैटिंग के विरुद्ध मत प्रकट किया था उन्होंने उस वक्त का बड़े उठाओ पूर्व विरोध किया था जो जनमत को सरकार के विरुद्ध भड़काने वाला तथा न्याय का अवरोध था Matecalf की स्पष्ट मान्यता थी.
“मै स्वयं अपने तौर पर हमेशा समाचार पत्रों की आजादी का समर्थन किया है क्योंकि मेरा यह विचार रहा है इसे खराबी से बजाएं लाभ अधिक है और अधिक तक मेरा यही विचार है मैं मानता हूं कि अन्य प्रकार की आजादी की तरह समाचार पत्रों की आजादी उस स्थिति में रद्द की जा सकती है जिसमें उसकी सुरक्षा के लिए यह बलिदान आवश्यक हो जाए लेकिन इसके फलस्वरूप में यह स्वीकार नहीं कर सकता कि इस दृष्टांत को सरकार की सामान्य कार्य प्रणाली के लिए कोई अपवाद मान लिया जाए यदि राज्य के लिए इससे कोई खतरा हो तो मेरा ख्याल से विचार की अभिव्यक्ति की मुक्त रखने की अपेक्षा उसको दबाना अधिक खतरनाक है क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी से हानिकारक प्रवृत्ति निष्प्रभावी हो जाती है लोगों को सोचने और समझने से रोकना असंभव है मेरा विचार है कि उसके स्थाई आक्रोश को उनके मन मे सो लगने देने और विस्फोट की स्थिति तक पहुंचने का अवसर देने की अपेक्षा यह कहीं ज्यादा अच्छा है कि वे उसे समाचार पत्रों में गुमनाम पत्रों द्वारा प्रकट करें क्योंकि गुमनाम पत्र के लेखक वर्ग को कोई जान नहीं पाता”
Matecalf को भारतीय प्रेस का मुक्तिदाता कहा जाता है 15 सितंबर 1835 से उसने लाइसेंस प्रणाली को समाप्त कर समाचार पत्रों के स्वतंत्र विकास एवं प्रसार में अभूतपूर्व योगदान दिया इस कानून के तहत अधिकार पत्र लेने की तथा समाप्त कर दी गई तथा प्रति व्यक्ति सामान्य कानूनी और नैतिक परिधि में रहते हुए किसी भी सार्वजनिक विषय पर अपने विचार प्रकट करने के लिए स्वतंत्र होगा.
Matecalf न hi इस अधिनियम के तहत राजद्रोही आपत्तिजनक तथा उकसाने एवं भड़काने वाली लेखन को प्रतिबिंबित किया और इसके लिए भारी जुर्माने की व्यवस्था की इस दौरान अनेक ऐसे सामाजिक संगठन बन गए थे जो भारत में समाज सुधार के लिए कृतसंकल्प थे भारतीय जन जीवन में व्याप्त कुरीतियों पर इन सामाजिक संगठनों ने खुलकर प्रहार किया नहीं सामाजिक चेतना विकसित कराने में इन संगठनों की विशेष भूमिका रही इनमें से कुछ ने स्वयं के समाचार पत्र भी प्रकाशित किए जिनसे वैचारिक चिंतन करने का अवसर सुलभ हो सका.
सन 1839 तक कोलकाता से 26 यूरोपीय समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे थे जिसमें 6 दैनिक थे तथा नौ भारतीय समाचार पत्र थे मुंबई में 9 यूरोपीय तथा चार भारतीय समाचार पत्र थे मद्रास से 10 यूरोपीय पत्र प्रकाशित हो रहे थे लुधियाना, दिल्ली, आगरा तथा श्रीरामपुर से 11 समाचार पत्र प्रकाशित हो रहा था.
1835 का मैटकॉप अधिनियम
भारतीय प्रेस की किए जाने वाले पक्षपात का मैटकॉप में सदा विरोध किया काउंसिल के कुछ सदस्यों ने मैटकॉप की प्रेस के प्रति उदार नीति का विरोध किया अंततः उसने काउंसिल के सदस्यों को समझा-बुझाकर संतुष्ट कर दिया तथा 3 अगस्त 1835 को भारतीय पत्रकारिता के इतिहास का सर्वाधिक उदार प्रेस एक्ट पारित किया एक्ट के प्रावधानों के अनुसार-
1833 के एडम के प्रेस नियंत्रण तथा उसी आधार पर 1825 को 1827 में मुंबई में जारी उन आदेशों को वापस दे दिया गया जिसमें यह व्यवस्था थी कि मुद्रक तथा प्रकाशक को गवर्नर जनरल से लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक था
1825 के उस आदेश को रद्द कर दिया गया जिसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों पर समाचार पत्रों से संबंध रखने पर प्रतिबंध लगाया गया था
मुद्रक अथवा प्रकाशन द्वारा समाचार पत्र शुरू करने के लिए नाम तथा मुद्रक और प्रकाशक का पता देती हुई घोषणा पत्र प्रस्तुत किया पर्याप्त था
मुद्रक तथा प्रकाशक को नए घोषणापत्र पति में अथवा मुद्रक प्रकाशक में परिवर्तन होने पर भरना आवश्यक होगा पुस्तक तथा समाचार पत्र पर प्रकाशक का नाम तथा पता प्रकाशित करना आवश्यक होगा
इ
नियमों का अनुपालन करने पर 5 हजार रुपए जुर्माना अथवा 2 वर्ष तक की जेल की सजा का प्रावधान किया गया यह नियम ईस्ट इंडिया कंपनी के संपूर्ण अधिकार क्षेत्र पर लागू थी.
Share via WhatsApp