T.R.P क्या है टीआरपी इससे जुड़ी तमाम बातें
TRP यानी television rating point भारत में घरों तक चैनलों की पहुंच का आकलन करने के लिए यही सिस्टम काम करता है टेलीविजन ऑडियंस मैनेजमेंट यानी टैम मीडिया रिसर्च के चुने गए शहरों के कुछ स्थानों पर टीवी सेट के साथ टीआरपी मीटर लगाए हैं
यह मीटर जो मिनी कंप्यूटर और मॉडर्न की तरह होता है जो सैंपल टीवी पर चलने वाली सभी चरणों के शुरू होने और बंद होने की जानकारी दर्ज कर लेता है
इसी रिकॉर्डिंग के विश्लेषण के आधार पर जो एजेंसी तय कर पाती है कि किस चैनल को दर्शकों ने किस समय से कितना देर तक देखा है इसी तरह सभी जगह के आंकड़े का आकलन कर यह एजेंसी यह बताती है कि किस चैनल के किस कार्यक्रम को कितने प्रसादी दर्शकों ने देखा है
हर हफ्ते एजेंसियां इस तरह के आंकड़े को जारी करती है इस टीआरपी रेटिंग से चैनलों को पता चल जाता है कि उसका कौन सा कार्यक्रम कितने प्रतिशत लोगों में पसंद किया गया या उसकी पहुंच कायम हो पाई है
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टीवी न्यूज़ चैनलों के अलावा मनोरंजन चैनलों पर चलने वाले कार्यक्रमों के आंकड़े भी इसी तरह जारी किए जाते हैं टैम मीडिया रिसर्च दरअसल नीलसन इंडिया और कंटर मार्केट रिसर्च का संयुक्त उपक्रम है टाइम मीडिया रिसर्च को ही संचित रूप में 10 के नाम से जाना जाता है
चैनलों की लोकप्रियता को लगातार आंकने का यह काम 10 मुख्य रूप से विज्ञापन दाताओं की संस्था ” इंडियन सोसायटी ऑफ एडवरटाइजर्स ” ,एडवरटाइजिंग एजेंसी एसोसिएशन ऑफ इंडिया और “इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फेडरेशन” के लिए करता है.
1998 में इसके गठन के बाद से यह एजेंसी इस काम में जुटी है इसका दावा है कि देश के 225 शहरों में इसके 36000 से ज्यादा लोग हैं जिनसे यह सूचना हासिल करता है
इसके अलावा एक लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों और एक लाख से कम आबादी वाले कुछ अर्ध ग्रामीण इलाकों में लगभग 1000 मीटर लगे हैं जिन से मिली सूचना के आकलन के बाद यह टाइम रेटिंग जारी करता है फिलहाल टेलीविजन चैनलों और उसकी कार्यक्रमों की लोकप्रियता मापने का यही पैमाना काम करता है
हालांकि इसकी प्रमाणिकता को लेकर सवाल भी उठाए जाते हैं इस व्यवस्था का आलोचना करने वालों का तर्क है कि केवल कुछ शहरों में टीआरपी मीटर लगाकर इसकी सही जानकारी हासिल नहीं की जा सकती है कई राज्यों और कई शहरों में टीआरपी मीटर नहीं लगे हैं ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह लगभग नहीं है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में भी आरटीआरपी की अच्छी पहुंच है
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ऐसे में किसी चैनल और उसकी कार्यक्रमों की लोकप्रियता का अंदाजा इसके जरिए लगाना तर्कसंगत नहीं यही वजह है कि इसे और भी अधिक प्रमाणिक बनाने की कवायद शुरू की गई है भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय दूरसंचार नियामक आयोग को यहां इस बारे में एक बेहतर व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया है
बरहाल टीआरपी की मौजूदा व्यवस्था के तहत ही सभी चैनलों फिलहाल नंबर वन की रेस में बने रहना चाहते हैं और इसलिए हर हफ्ते आने वाली टीआरपी को लेकर न्यूज़ रूम के सीनियर के बीच एक खास तरह की उत्सुकता और कुछ हद तक तनाव का माहौल रहता है इस रेटिंग से उन्हें यह अंदाजा भी हो जाता है कि लोग किस तरह के बुलेटिन पसंद करते हैं
हफ्ते का कौन सा बुलेटिन दर्शकों की खास पसंद रहा दर्शकों की इस पसंद नापसंद के आधार पर चैनल पर बुक और प्रोग्राम पढ़ो दूसरों को आगे की रणनीति तय करने में भी आसानी होती है यह रेटिंग एक तरफ न्यूज़ चैनलों के संपादकीय विभाग को अपने कार्यक्रमों की लोकप्रियता में मदद करती है वही मार्केटिंग विभाग इसकी आधार पर अपने विज्ञापन दाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करता है
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चैनलों पर अक्सर इसी रेटिंग के दबाव में मूल खबर से हटकर लोकप्रिय और हल्की-फुल्की कार्यक्रम चलाने के आरोप लगते हैं क्रिकेट और फिल्म से जुड़े बुलेटिन के अलावा अपराध और कॉमेडी से जुड़े कार्यक्रम दिखाने के पीछे चैनलों का मकसद टीआरपी हासिल करना ही माना जाता है
एक सर्वेक्षण के मुताबिक हिंदी न्यूज़ चैनलों पर और कानून व्यवस्था से जुड़ी खबरों का दर्शक वर्ग सबसे बड़ा है 2010 के आंकड़े के मुताबिक हिंदी न्यूज़ चैनलों के 26 फ़ीसदी तक ऐसे समाचार और कार्यक्रम देखते हैं इसके बाद खेल के दर्शकों की तादाद लगभग 16 फ़ीसदी बताई गई है
इसकी तरह मनोरंजन से जुड़ी खबरें और कार्यक्रम 14 फ़ीसदी लोग पसंद करते हैं सियासी और सरकार से जुड़ी खबरों में 13 फ़ीसदी लोगों की दिलचस्पी होती है जबकि सामाजिक विषयों और अन्य दर्शकों की तादाद 9 फ़ीसदी आंकी गई है
किसी तरह की दुर्घटना या सरकारी तंत्र की विफलता वाली स्टोरी 5 फ़ीसदी लोगों में पसंद की जाती है तो ज्योतिष और मौसम की खबरों और कार्यक्रमों में 4 फ़ीसदी लोगों की है यह भी बताता है कि 2010 में टीवी के दर्शकों को देखने वाले का अनुपात केवल 8 फ़ीसदी तक था.
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