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आज आपको हम ज्योतिषो के अनुसार ये बताने वाले की श्राद्ध नहीं करेंगे तो क्या होगा? और क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए पितृ पक्ष पूर्णिमा से और उसके बाद आने वाले दिनों से ही सुरु हो जाता है।
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यह चंद्र चक्र के चरण की शुरुआत को चिह्नित करता है। यह हिंदू कैलेंडर में 16 Day तक का एक बड़ा चक्र है। , क्योंकि पितृ पक्ष के दौरान, लोग अपने मृत रिश्तेदारों / पूर्वजों को सम्मान देने के लिए तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं।
लोगो द्वारा माना जाता है जो मर चुके हे उनकी आत्माये अपनी अधूरी इछाओ को पूरा करने और अपने प्रिय जनो को मिलने और उनको को देखने के लिए पृथ्वी पर लौट आती हैं।
जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती हे तब वो मोक्ष प्राप्त करते हैं और मुक्त हो जाते हैं, और पिंड दान (पके हुए चावल और काले तिल से बने भोजन की पेशकश की एक विधि) करके अपनी भूख को संतुष्ट करते हैं।
पिंड दान का अर्थ उन लोगों को खुश करने की रस्म से है जो मृत हैं। प्रार्थना की पेशकश की जाती है, और आत्माओं को शांत करने और जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पाने में मदद करने के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं।
जिन पर पितरों के श्राप वाले लोगों के लिए पितृ पक्ष भी एक महत्वपूर्ण अवधि है। वो भी इस प्रकार से श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं और कौवे को भोजन कराते हैं (माना जाता है कि यह मृतकों का प्रतिनिधि है)।
लोगों द्वारा प्रदान किए गए भोजन को स्वीकार करने से, कौवा सुझाव देता है कि पूर्वज प्रसन्न हैं। हालांकि, अगर यह भोजन की पेशकश करने से इनकार करता है, तो यह इंगित करता है कि मृतकों को नाराज किया गया है।
श्राद्ध करने के बाद क्या करें ?
श्राद्ध प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद दान अवश्य दें. श्राद्ध कर्ता को हर प्रकार की बुराई से दूर रहकर पितरों को याद करना चाहिए और गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए.
इस दिन प्रकृति और जानवरों के हित के बारे में सोचना चाहिए और उनके सरंक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए. prabhasakshi.com की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि इन वस्तुओं का करें दान:-
- गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है।
- तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
- घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
- अनाज का दान- अन्नदान में गेहूं, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
- भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतान लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
6. वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।
7. सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।
8. चांदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चांदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
9. गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
10. नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।
– अनीष व्यास
श्राद्ध नहीं करेंगे तो क्या होगा?
श्राद्ध में जो ब्यक्ति अपने पितरो का श्राद्ध नहीं करता हे उनपे पितृ नाराज हो जाते हे जिससे उनको ऐसा लगता हे की धरती पर हमारा कोई नहीं जो था वो हमारा नहीं इसलिए वो उनको गंभीर करुणा से श्राप देते हे जिससे उनकी अधूरी इच्छा पूरी नहीं हो पति हे और उनकी आत्मा भटकती रहती है।
वह भयंकर करुणा और दुःख में आकर श्राप दे जाते हे जिससे की आपको अनगिनत परेशानियों और दुखो से सामना करना पड़ता है ऐसे लोग अपने ही पितरों द्वारा अभिशप्त होकर नाना प्रकार के दुखों का भाजन बनते हैं।
श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए?
आपको श्राद्ध में इन चीज़ो का प्रयोग नहीं करना चाहिए जैसे – मसूर, राजमा, कोदो, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्र जल से बना नमक। भैंस, हिरणी, ऊंटनी, भेड़ और एक खुर वाले पशु का दूध भी वर्जित है, पर भैंस का घी वर्जित नहीं है।
श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं। श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है।
- रात में कभी भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि रात को राक्षसी का समय माना गया है।
- संध्या के वक़्त भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध में कभी भी मसूर की दाल, मटर, राजमा, कुलथी, काला उड़द, सरसों एवं बासी भोजन आदि का प्रयोग करनावर्जित माना गया है।
- श्राद्ध के वक़्त घर में तामसी भोजन नहीं बनाना चाहिए।
- इस समय हर तरह के नशीले पदार्थों के सेवन से दूरी बनानी चाहिए।
- पितृ पक्ष के दिनों में शरीर पर तेल, सोना, इत्र और साबुन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध करते समय क्रोध, कलह और जल्दबाजी नही करनी चाहिए।
प्रिय मित्रो अपने पूर्वजो का श्राद्ध कीजिये उनसे आशीर्वाद लीजिये उनको खुस कीजिये उनको खुश करने के लिए पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा किया जाना चाहिए। पुत्र की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी श्राद्ध कर सकती है।
श्राद्ध में बनने वाले पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिये। श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, और तिल का उपयोग सबसे ज़रूरी माना गया है। श्राद्ध में ब्राह्मणो को सोने, चांदी, कांसे और तांबे के बर्तन में भोजन कराना सर्वोत्तम माना जाता हैं।
श्राद्ध पर भोजन के लिए ब्राह्मणों को अपने घर पर आमंत्रित करना चाहिए। मध्यान्हकाल में ब्राह्मण को भोजन खिलाकर और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
इस दिन पितर स्तोत्र का पाठ और पितर गायत्री मंत्र आदि का जाप दक्षिणा मुखी होकर करना चाहिए। श्राद्ध के दिन कौवे, गाय और कुत्ते को ग्रास अवश्य डालनी चाहिए क्योंकि इसके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है।