बिच्छू घास (कंडाली का पौधा) |
पर्वतीय इलाकों मैं उगने वाला बिच्छू घास जिसको कंडाली घास के नाम से भी जाना है, जो ओषधिय गुणों से भरपूर है जो उत्तराखंड के प्रमुख पकवानों मैं भी शामिल है, कंडाली घास पुरे साल भर उगने वाला जंगली घास होता है जो पहाड़ी इलाको मैं ज्यादा मात्रा मैं उगता है इसका बैज्ञानिक नाम अर्टिका डाइओका (Urtica dioica) रखा गया है, बिच्छू घास के पौधे की जड़ से लेकर पत्ते तक औषधीय गुणों से भरपूर है।
बिच्छू घास की जड़ के फायदे
बिच्छू घास की जड़ के फायदे अनेक हैं ज्यादातर यह घास का उपयोग बुखार आने, शरीर में कमजोरी होने, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी का उपचार करने मैं सहायक सिद्ध होता है बिच्छू घास की जड़ से कैंसर जैसी ला इलाज बीमारी की दवा बनाने मैं भी मदत करती हैं साथ ही यह बिच्छू घास का मधुमेह में उपयोग और, किडनी संक्रमण, रक्तचाप, बवासीर, अस्थमा, लीवर संक्रमण के उपचार में इस पौधे के पत्ती, बीज व जड़ का इस्तेमाल किया जाता है।
बिच्छू बूटी के फायदे अनेक हैं जिससे आपको अगर पेट की समस्या है तो आपकी यह समस्या बिच्छू बूटी से दूर हो जाएगी बिच्छू बूटी मैं विटामिन A, B, D, आयरन, केल्सियम, मैगनीज़ पाया जाता है जिसका खाने मैं (बिच्छू घास के कोमल पत्तों का साग ) साग के मैं भी इस्तेमाल करते हैं।
बिच्छू बूटी का पौधा 2 से 4 फिट लम्बा होता है यह सीधी लम्बाई वाला होता है इसकी पत्तों पर और तने पर सफ़ेद रंग के कांटे होते हैं जिनको छूने से तेज़ झनझनाहट होती है कुछ देर तक बहुत खुजली और दर्द होता है जहाँ पर इसका कांटा चुभ जाये वहाँ पर आपकी चमड़ी गोलकृत मैं सूज जाती है।
अगर आपको बिच्छू घास का पौधा चुभ जाये तो तुरंत आपको नाक से बहता हुआ सिंघाड़ा उसपे लगाना चाहिए यह थोड़ा funny है लेकिन असर तुरंत होता है और ठीक हो जाता है
बिच्छू घास कितने प्रकार का होता है।
बिच्छू घास पहाड़ों दो प्रकार का होता है एक घास जिसका उपयोग ओषधि बनाए जाने मैं किया जाता है और दूसरे का जिसका नाम अलग अलग जगह पर दूसरा उसको डोंडा कंडाली कहा जाता है।
- ढोंडा कंडाली
डोंडा कंडाली का डंक भी सेम होता है लेकिन यह चुभने पर कम दर्द होता है जल्दी ( 1 मिनट ) ठीक हो जाता है और इसकी छाल से रस्सियाँ भी बनाई जाती है जो एक तन तक भार उठा सकती है।