देहरादून, 25 नवंबर 2023 : भारतीय छात्र संगठन (एसएफआई) की उत्तराखंड इकाई ने राज्य के निजी स्कूलों द्वारा पिछले एक दशक से की जा रही "मनमानी फीस वृद्धि" के खिला़फ जांच की मांग करते हुए सरकार को घेरा है। संगठन का आरोप है कि निजी स्कूल अभिभावकों की मजबूरी का फायदा उठाकर फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी कर रहे हैं, जिससे छात्रों का भविष्य और परिवारों की आर्थिक स्थिति दोनों प्रभावित हो रहे हैं।
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उत्तराखंड में निजी स्कूलों की फीस वृद्धि का विरोध |
ग्रामीण पलायन और निजी स्कूलों का शोषण
एसएफआई के अनुसार, उत्तराखंड में हज़ारों अभिभावक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तलाश में गाँव छोड़कर शहरों का रुख करते हैं, लेकिन निजी स्कूलों द्वारा इस मजबूरी का दुरुपयोग किया जा रहा है। संगठन के राज्य अध्यक्ष नितिन मलेथा ने बताया, "सरकारी स्कूलों को धीरे-धीरे बंद किया जा रहा है, जबकि निजी संस्थानों को फीस बढ़ाने की खुली छूट मिली हुई है। इस 'डबल इंजन' नीति के चलते गरीब परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।"
पिछले 10 वर्षों की फीस वृद्धि की जांच की मांग
एसएफआई ने राज्य सरकार से पिछले 10 वर्षों में निजी स्कूलों द्वारा की गई सभी फीस वृद्धियों की स्वतंत्र जांच कराने और अवैध रूप से जमा किए गए धन को वापस करने की मांग की है। राज्य सचिव हिमांशु चौहान ने कहा, "यह लूट की व्यवस्था है। सरकार निजी स्कूलों के मनमाने फैसलों पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि शिक्षा को मुनाफे का व्यापार बना दिया गया है।"
सरकारी स्कूल बंद होने से बढ़ी समस्या
संगठन के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया है, जिसके कारण निजी स्कूलों पर निर्भरता बढ़ी है। मलेथा ने आगे कहा, "शिक्षा के निजीकरण के इस हमले में भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें समान रूप से जिम्मेदार हैं। अब यह जनविरोधी नीतियों के खिलाफ़ छात्र-अभिभावक एकजुट होंगे।"
सरकार की चुप्पी पर सवाल
एसएफआई ने सवाल उठाया है कि निजी स्कूलों को फीस निर्धारण की असीमित स्वतंत्रता किसने दी? अभी तक राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि "फीस नियमन को लेकर दिशा-निर्देश पहले से मौजूद हैं।"
आगे की रणनीति
एसएफआई ने घोषणा की है कि यदि सरकार जल्द कार्रवाई नहीं करती है, तो वह छात्रों और अभिभावकों के साथ मिलकर राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करेगा। इस मुद्दे ने उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था की खामियों को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है।