कई बार कुछ घटनाएँ समाज की आत्मा को झकझोर देती हैं। कभी-कभी कोई एक खबर, एक चेहरा, एक कहानी हमारे दिलों में इस कदर घर कर जाती है कि हम चाहकर भी उसे भुला नहीं पाते। उत्तराखंड की अंकिता भंडारी की कहानी भी ऐसी ही एक कहानी है, जिसने न सिर्फ एक परिवार, बल्कि पूरे राज्य और देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया।
यह कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं है, यह कहानी है उस सिस्टम की, उस राजनीति की, उस सामाजिक ताने-बाने की, जिसमें कभी-कभी सच्चाई और इंसाफ दोनों ही गुम हो जाते हैं। यह कहानी है एक मासूम लड़की की, जिसने सपने देखे थे, अपने परिवार के लिए कुछ करने की चाह थी, लेकिन उसकी जिंदगी कुछ ऐसे लोगों की हवस, लालच और सत्ता के खेल में कुर्बान हो गई, जिनका नाम आज भी समाज के सामने पूरी तरह से उजागर नहीं हो पाया।
यह कहानी है एक VVIP की, जिसका नाम हर कोई जानना चाहता है, लेकिन कोई खुलकर बोल नहीं पा रहा। यह कहानी है एक माँ-बाप की, जो अपनी बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन हर बार सिस्टम की दीवार से टकरा जाते हैं। यह कहानी है उस भीड़ की, जो कभी सड़कों पर उतरकर इंसाफ की मांग करती है, तो कभी सोशल मीडिया पर अपने गुस्से का इजहार करती है, लेकिन अंत में थक-हारकर घर लौट जाती है।
तो आइए, इस लेख में हम विस्तार से जानते हैं अंकिता भंडारी केस की पूरी कहानी, VVIP की गुत्थी, कोर्ट के फैसले की बारीकियां, और उन सवालों को, जो आज भी उत्तराखंड की जनता के दिल में चुभ रहे हैं।
अंकिता भंडारी कौन थी?
उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल की रहने वाली अंकिता भंडारी एक साधारण परिवार की बेटी थी। उसके पिता एक मामूली नौकरी करते थे और माँ गृहिणी थीं। परिवार की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन अंकिता पढ़ाई में होशियार थी और हमेशा अपने माता-पिता का सहारा बनना चाहती थी। 2020 में उसने 12वीं की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए देहरादून चली गई। वहाँ उसने होटल मैनेजमेंट का कोर्स जॉइन किया, लेकिन किसी कारणवश वह कोर्स पूरा नहीं कर पाई।
अंकिता ने अपने परिवार की मदद के लिए नौकरी करने का फैसला किया। इसी सिलसिले में उसने ऋषिकेश के पास स्थित वनंतरा रिसोर्ट में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करना शुरू किया। उसकी उम्र महज 19 साल थी, लेकिन सपने बड़े थे। वह चाहती थी कि अपने दम पर कुछ करे, परिवार को सहारा दे और एक बेहतर जिंदगी बनाए।
वनंतरा रिसोर्ट: सपनों की जगह या मौत का अड्डा?
वनंतरा रिसोर्ट, ऋषिकेश के पास एक आलीशान होटल था, जिसका मालिक पुलकित आर्य था। पुलकित आर्य उत्तराखंड बीजेपी के नेता और पूर्व राज्य मंत्री विनोद आर्य का बेटा है। रिसोर्ट में काम करने वाले स्टाफ में अंकिता के अलावा सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता भी थे। रिसोर्ट की चकाचौंध के पीछे एक स्याह सच छुपा था, जिसका पता अंकिता को धीरे-धीरे चलने लगा था।
अंकिता का एक करीबी दोस्त था पुष्पदीप, जिससे वह अपनी हर बात शेयर करती थी। अंकिता ने पुष्पदीप से चैट में कई बार बताया कि रिसोर्ट का माहौल ठीक नहीं है। वहाँ लड़कियों से गलत काम करवाने का दबाव डाला जाता है। अंकिता ने अपनी चैट में लिखा था कि उसे भी देह व्यापार के गंदे खेल में शामिल करने की कोशिश की जा रही है। उसने यह भी बताया कि रिसोर्ट में कभी-कभी ऐसे मेहमान आते हैं, जिन्हें 'स्पेशल सर्विस' चाहिए होती है।
VVIP के लिए 'स्पेशल सर्विस': मामला बिगड़ता गया
सितंबर 2022 की शुरुआत में अंकिता पर दबाव बढ़ने लगा। 17 सितंबर को अंकित गुप्ता ने अंकिता से कहा कि अगले दिन रिसोर्ट में एक VVIP गेस्ट आ रहा है, जिसे 'एक्स्ट्रा सर्विस' चाहिए। इसके लिए 10,000 रुपये तक देने की बात कही गई। अंकिता को कहा गया कि अगर उसकी नजर में कोई लड़की हो तो बताना और उसे लेकर आओ। यह सुनकर अंकिता भड़क गई। उसने अंकित गुप्ता को खरी-खोटी सुनाई और साफ कह दिया कि वह इस गंदे धंधे में शामिल नहीं होगी।
अंकिता ने अपनी चैट में लिखा कि ये लोग मुझे जबरदस्ती इस धंधे में धकेलना चाहते हैं। उसने अपने दोस्त पुष्पदीप को बताया कि वह अब यहाँ और नहीं रह सकती। वह किसी और होटल में नौकरी तलाश रही थी और जल्द ही रिसोर्ट छोड़ना चाहती थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
18 सितंबर 2022: गुमशुदगी की रिपोर्ट
18 सितंबर की शाम अंकिता अचानक गायब हो गई। उसके परिवार ने जब उससे संपर्क करने की कोशिश की तो उसका फोन बंद था। परिवार ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने जब जांच शुरू की तो रिसोर्ट के मालिक और स्टाफ ने बताया कि अंकिता खुद ही कहीं चली गई होगी। लेकिन परिवार को यकीन था कि उसकी बेटी पर कोई मुसीबत आई है।
पुलिस ने जांच शुरू की, लेकिन शुरुआत में केस को गंभीरता से नहीं लिया गया। परिवार और समाजसेवियों के दबाव के बाद पुलिस हरकत में आई। रिसोर्ट के मालिक पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को हिरासत में लिया गया। पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए।
अंकिता की हत्या: एक वीभत्स सच
जांच के दौरान सामने आया कि 18 सितंबर की रात अंकिता को रिसोर्ट के तीनों कर्मचारियों ने बहाने से बाहर ले जाकर ऋषिकेश के पास चिल्ला नहर के किनारे ले गए। वहाँ तीनों ने उसके साथ मारपीट की, उसे डराया-धमकाया और फिर उसे नहर में धक्का दे दिया। अंकिता की मौके पर ही मौत हो गई। तीनों आरोपी वापस लौट आए और ऐसे पेश आए जैसे कुछ हुआ ही न हो।
पुलिस ने जब आरोपियों से कड़ाई से पूछताछ की तो उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया। अंकिता का शव छह दिन बाद नहर से बरामद हुआ। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसकी मौत डूबने से होना बताया गया, लेकिन शरीर पर चोट के निशान भी मिले। इस घटना ने पूरे उत्तराखंड को हिला दिया। लोग सड़कों पर उतर आए और इंसाफ की मांग करने लगे।
जांच में गड़बड़ियां: सबूत मिटाने की साजिश
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, कई गड़बड़ियां सामने आने लगीं। सबसे बड़ी बात यह थी कि घटना के तुरंत बाद रिसोर्ट को गिरा दिया गया। इससे कई अहम सबूत मिटा दिए गए। पुलिस ने आरोपियों के फोन जब्त किए, लेकिन उनमें से कई फोन गायब थे। CCTV फुटेज भी डिलीट कर दिए गए थे। डीवीआर बदल दिया गया था। यानी सबूतों को जानबूझकर मिटाया गया।
परिवार और समाजसेवियों ने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन ने VIP को बचाने के लिए सबूतों के साथ छेड़छाड़ की। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी सरकार पर आरोप लगाए कि वह अपने नेताओं को बचाने के लिए जांच को प्रभावित कर रही है।
VVIP की गुत्थी: नाम क्यों नहीं आया सामने?
केस की शुरुआत से ही 'VVIP' शब्द चर्चा में रहा। अंकिता की माँ ने भी पुलिस को दिए बयान में एक बीजेपी नेता का नाम लिया था। पुष्पदीप और अंकिता की चैट में भी 'VVIP' और 'स्पेशल सर्विस' का जिक्र था। कोर्ट के फैसले में भी 10 से ज्यादा जगह 'VVIP' शब्द का उल्लेख है। लेकिन पुलिस और SIT की जांच में उस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
सरकार और पुलिस का कहना था कि 'VIP' शब्द का मतलब सिर्फ VIP रूम था, जबकि परिवार और समाजसेवी इसे किसी बड़े राजनीतिक या प्रशासनिक व्यक्ति से जोड़ते हैं। कोर्ट ने भी सबूतों के अभाव में VVIP के खिलाफ जांच के आदेश नहीं दिए। यह बात लोगों को हजम नहीं हुई। सबूतों के गायब होने, रिसोर्ट के गिराए जाने, और आरोपियों के फोन गायब होने से शक और गहरा गया।
कोर्ट का फैसला: अधूरा इंसाफ?
करीब तीन साल तक चली सुनवाई के बाद 30 मई 2025 को कोर्ट ने फैसला सुनाया। पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को हत्या, सबूत मिटाने और साजिश की धाराओं में दोषी पाया गया। कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया कि सबूतों के अभाव में VVIP के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती।
फैसले के बाद आरोपियों के चेहरे पर मुस्कान थी। शायद उन्हें यकीन था कि वे असली गुनहगार को बचाने में कामयाब हो गए हैं। परिवार और समाजसेवियों को यह फैसला अधूरा लगा। उनका कहना था कि जब तक असली मास्टरमाइंड, यानी VVIP को सजा नहीं मिलती, तब तक इंसाफ अधूरा है।
राजनीतिक उठा-पटक: सियासत और इंसाफ की जंग
अंकिता भंडारी केस ने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया। विपक्ष ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह अपने नेताओं को बचाने के लिए जांच को प्रभावित कर रही है। कांग्रेस ने वादा किया कि अगर वह 2027 में सत्ता में आई तो केस की दोबारा जांच कराएगी। बीजेपी सरकार ने सफाई दी कि उसने दोषियों को सजा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
समाजसेवी रोशन रतूड़ी जैसे लोगों ने सोशल मीडिया पर लगातार VVIP की पहचान उजागर करने की मांग की। हाल ही में एक फेसबुक पोस्ट में उन्होंने एक बीजेपी नेता की फोटो शेयर की और जनता से पूछा कि क्या यही वह VVIP है? इस पोस्ट पर सैकड़ों लोगों ने प्रतिक्रिया दी और अधिकतर ने हाँ में जवाब दिया।
मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका
अंकिता भंडारी केस में मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका भी अहम रही। शुरू में जब पुलिस ने केस को गंभीरता से नहीं लिया, तब मीडिया और सोशल मीडिया के दबाव ने ही पुलिस को हरकत में आने के लिए मजबूर किया। टीवी चैनलों, अखबारों और यूट्यूब चैनलों ने लगातार केस को हाईलाइट किया। सोशल मीडिया पर #JusticeForAnkita ट्रेंड करने लगा।
लोगों ने फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर अपनी आवाज उठाई। समाजसेवियों, पत्रकारों और आम लोगों ने मिलकर इंसाफ की लड़ाई को एक आंदोलन बना दिया। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, लोग थकने लगे। केस अदालत में चला गया और मीडिया की रुचि भी धीरे-धीरे कम हो गई। लेकिन कुछ लोग आज भी सोशल मीडिया पर इस केस को जिंदा रखे हुए हैं।
परिवार की पीड़ा: एक अधूरा सपना
अंकिता के माता-पिता के लिए यह हादसा किसी बुरे सपने से कम नहीं था। उनकी बेटी, जो उनके लिए उम्मीद की किरण थी, उसे इस बेरहमी से मार दिया गया। माँ-बाप ने इंसाफ के लिए हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन हर बार सिस्टम की दीवार से टकरा गए। कोर्ट का फैसला आने के बाद भी उनकी आँखों में सुकून नहीं था। उन्हें लगता है कि जब तक असली गुनहगार, यानी VVIP को सजा नहीं मिलती, तब तक उनकी बेटी की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।
उत्तराखंड की जनता के सवाल
अंकिता भंडारी केस आज भी उत्तराखंड की जनता के दिल में एक टीस की तरह है। लोग पूछते हैं:
- वह VVIP कौन था, जिसके लिए अंकिता पर 'स्पेशल सर्विस' का दबाव डाला गया?
- क्यों पुलिस और प्रशासन ने सबूतों को मिटाने दिया?
- क्यों कोर्ट ने VVIP के खिलाफ जांच के आदेश नहीं दिए?
- क्या कभी असली गुनहगार को सजा मिलेगी?
- क्या सिस्टम हमेशा ताकतवर लोगों के आगे झुक जाता है?
यह सवाल आज भी हवा में तैर रहे हैं। लोग जानते हैं कि सच्चाई क्या है, लेकिन डर या मजबूरी के कारण खुलकर बोल नहीं पा रहे।
क्या आगे कभी इंसाफ मिलेगा?
अंकिता भंडारी केस ने यह साबित कर दिया कि जब तक सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं होगी, तब तक इंसाफ अधूरा रहेगा। अगर सबूतों के साथ छेड़छाड़ न होती, अगर पुलिस और प्रशासन ने ईमानदारी से जांच की होती, अगर कोर्ट ने VVIP के खिलाफ जांच के आदेश दिए होते, तो शायद आज कहानी कुछ और होती।
लेकिन उम्मीद अभी बाकी है। समाजसेवी, पत्रकार और आम लोग आज भी इस केस को जिंदा रखे हुए हैं। सोशल मीडिया पर आवाज उठ रही है। कांग्रेस ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आई तो केस की दोबारा जांच कराएगी। शायद एक दिन सच्चाई सामने आए और अंकिता को पूरा इंसाफ मिले।
अंत में...
अंकिता भंडारी की कहानी सिर्फ एक केस की कहानी नहीं है, यह उस समाज की कहानी है, जहाँ कभी-कभी सच्चाई और इंसाफ दोनों ही दबा दिए जाते हैं। यह कहानी है एक माँ-बाप की, जो अपनी बेटी के लिए लड़ते रहे, एक समाज की, जो कभी-कभी जाग जाता है, और एक सिस्टम की, जो अक्सर ताकतवरों के आगे झुक जाता है।
यह कहानी है उस सवाल की, जो आज भी हवा में तैर रहा है—क्या कभी उस VVIP का नाम सामने आएगा? क्या कभी अंकिता को पूरा इंसाफ मिलेगा? या फिर यह कहानी भी उन हजारों कहानियों की तरह अधूरी रह जाएगी, जो हर दिन हमारे समाज में लिखी जाती हैं?