Devidhura Mandir Uttarakhand: उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले में स्थित देवीधुरा मंदिर (मां वराही देवी मंदिर) भारत के सबसे प्राचीन और रहस्यमयी धार्मिक स्थलों में से एक है। यह प्राचीन शक्तिपीठ न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि 'बग्वाल' नामक अनोखे त्योहार के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। समुद्र तल से 1850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर, कुमाऊं क्षेत्र के तीन प्रमुख पहाड़ी स्थानों - अल्मोड़ा, नैनीताल और चंपावत के त्रिकोणीय संगम पर है।
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Devidhura Mandir Uttarakhand |
भौगोलिक स्थिति और पहुंच मार्ग
देवीधुरा मंदिर अल्मोड़ा से लगभग 75 किलोमीटर और लोहाघाट से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह चंपावत जिले का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो कुमाऊं क्षेत्र के हृदय में बसा है। यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से लोहाघाट-हल्द्वानी राजमार्ग के रास्ते आसानी से जाया जा सकता है। आसपास के घने देवदार और बांज के वृक्षों से घिरा यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है, जहां से हिमालय की बर्फीली चोटियों का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है।
प्राकृतिक वातावरण
देवीधुरा का प्राकृतिक परिदृश्य अत्यंत मनोरम है। ऊंचे देवदार और बांज के वृक्षों से घिरा यह क्षेत्र हिमालय की चोटियों का पैनोरमिक दृश्य प्रदान करता है। यह स्थान प्रसिद्ध शिकारी और लेखक जिम कॉर्बेट की कहानी "टेम्पल टाइगर" से भी जुड़ा हुआ है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्ता और बढ़ जाती है।
मंदिर का इतिहास और धार्मिक महत्व
देवीधुरा मंदिर को 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और स्थानीय लोगों के लिए यह अत्यंत पवित्र स्थान है। इस मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है और यहां की धार्मिक परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं।
मंदिर की संरचना
देवीधुरा मंदिर की मूल संरचना एक गुफा मंदिर के रूप में है, जो अत्यंत सुंदर और आकर्षक है। गुफा के अंदर एक खाली स्थान है जिसे देवी पीठ कहा जाता है। मान्यता है कि मां वराही स्वयं इस स्थान पर विराजमान हैं। वर्तमान में, मां वराही देवी की एक मूर्ति यहां स्थापित है, जबकि मूल मूर्ति को तांबे की टोकरी में रखकर सामने वाले मुख्य मंदिर में पूजा जाती है।
मंदिर परिसर में दर्शन के लिए एक विशेष मार्ग है, जिसके माध्यम से भक्त क्रमश: विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन करते हैं:
- गणेश जी का मंदिर
- प्राचीन शक्ति पूजा पीठ
- भीमशिला
- भैरव मंदिर
- मां कालिका मंदिर
- बेताल मंदिर
- मां दिगंबरा मंदिर
मंदिर का बाहरी भाग अत्यंत रंगीन है और प्रतिदिन सुबह-शाम यहां आरती और भजन होते हैं।
पौराणिक कथाएं
देवीधुरा मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार, पहले यहां नरबलि की प्रथा प्रचलित थी। एक बार चम्याल खाम की एक बुजुर्ग महिला के बेटे की बलि की बारी आई। महिला ने देवी मां की तपस्या की और देवी ने उसे दर्शन देकर कहा कि नरबलि के स्थान पर एक मनुष्य के बराबर रक्त की आवश्यकता है। इस घटना के बाद से ही यहां बग्वाल खेलने की परंपरा शुरू हुई। एक और किंवदंती के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति देवी को खुली आंखों से देखता है तो उनकी तीव्र दृष्टि शक्ति के कारण वह तुरंत अंधा हो जाता है।
बग्वाल: एक अनोखा त्योहार
देवीधुरा की सबसे प्रसिद्ध विशेषता है यहां का अनोखा त्योहार 'बग्वाल' या 'भगाल', जिसका अर्थ होता है पत्थरों से युद्ध। यह त्योहार हर वर्ष रक्षाबंधन के दिन मनाया जाता है और देश-विदेश से हजारों लोग इसे देखने आते हैं।
बग्वाल की परंपरा
बग्वाल में चार खामों - चम्याल, गहरवाल, लमगड़िया और वालिग के साथ-साथ सात थोकों के योद्धा भाग लेते हैं। इस अनुष्ठान में प्रतिभागी एक-दूसरे पर फल और पत्थर फेंकते हैं। मान्यता है कि जब तक पर्याप्त मात्रा में रक्त नहीं बहता, तब तक यह युद्ध चलता रहता है। मंदिर के आचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी के अनुसार, पहले यह युद्ध 45-45 मिनट तक चलता था। हालांकि, हाल ही में हुई एक बग्वाल केवल 9 मिनट तक चली, जिसमें 50 से अधिक लोग घायल हुए।
बग्वाल के प्रतिभागी
बग्वाल में भाग लेने वाले प्रतिभागी इसे देवी का आशीर्वाद मानते हैं। पिछले 5 वर्षों से बग्वाल खेल रहे मदन जोशी का कहना है कि वे घायल होने पर भी प्रसन्न हैं क्योंकि उन्हें देवी मां का आशीर्वाद मिला है। मुंबई से हर वर्ष बग्वाल खेलने आने वाले प्रेम सिंह भी इसी विश्वास को साझा करते हैं।
वर्तमान स्थिति
हालांकि कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार ने पत्थरबाजी के कारण होने वाली चोटों को देखते हुए इस प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास किया है। फिर भी, यह त्योहार स्थानीय संस्कृति और परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।
पर्यटन महत्व
देवीधुरा मंदिर केवल धार्मिक महत्व के लिए ही नहीं, बल्कि अपने प्राकृतिक सौंदर्य और अनूठे त्योहारों के कारण पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
आसपास के आकर्षण
देवीधुरा और आसपास का क्षेत्र प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां से हिमालय की चोटियों का शानदार दृश्य दिखाई देता है। घने देवदार और बांज के जंगल इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाते हैं।
यात्रा का उत्तम समय
रक्षाबंधन के समय बग्वाल त्योहार देखने के लिए यहां जाना सबसे उपयुक्त रहता है, जब हजारों लोग इस अनोखे त्योहार को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। इसके अलावा, मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के महीने भी यहां यात्रा के लिए अच्छे माने जाते हैं।
देवीधुरा मंदिर उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अमूल्य रत्न है। यह प्राचीन शक्तिपीठ न केवल अपनी रहस्यमयी गुफा मंदिर संरचना के लिए जाना जाता है, बल्कि बग्वाल जैसे अनोखे त्योहार के लिए भी प्रसिद्ध है जो सदियों पुरानी परंपरा का प्रतीक है। प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह स्थान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव के साथ-साथ पर्यटन का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
इस मंदिर की यात्रा करने वाले भक्तों और पर्यटकों को न केवल धार्मिक आनंद की अनुभूति होती है, बल्कि वे हिमालय की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता का भी आनंद ले सकते हैं। देवीधुरा मंदिर भारतीय संस्कृति और परंपरा की समृद्ध विरासत का एक जीवंत उदाहरण है जो आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहने योग्य है।