balochistan news: सम्पूर्ण इतिहास, भारत से संबंध और पाकिस्तान से दुश्मनी

balochistan news : बलोचिस्तान, दक्षिण एशिया का एक ऐतिहासिक और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह पाकिस्तान के पश्चिमी भाग में स्थित है और अपनी भौगोलिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विविधताओं के लिए जाना जाता है। बलोचिस्तान का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है, जिसमें सिंधु घाटी सभ्यता, फारसी साम्राज्य, इस्लामी खिलाफत, ब्रिटिश राज और आधुनिक पाकिस्तान की छाया देखी जा सकती है। आज बलोचिस्तान न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि भारत और पूरे दक्षिण एशिया के लिए भी सामरिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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1. बलोचिस्तान का प्राचीन इतिहास

1.1 सिंधु घाटी और प्रारंभिक सभ्यताएँ

बलोचिस्तान का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता (3300–1300 ईसा पूर्व) से जुड़ा हुआ है। यहाँ के मेहरगढ़ (Mehrgarh) पुरातात्विक स्थल को मानव सभ्यता के सबसे पुराने कृषि केंद्रों में गिना जाता है। मेहरगढ़ में मिले अवशेष बताते हैं कि यहाँ 7000 ईसा पूर्व से ही मानव बसावट थी। बलोचिस्तान के पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों में कई अन्य प्राचीन बस्तियाँ भी पाई गई हैं, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक समृद्धि का प्रमाण हैं।

1.2 फारसी और यूनानी प्रभाव

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बलोचिस्तान फारसी साम्राज्य (अचमेनिड्स) के अधीन आ गया। इसके बाद सिकंदर महान (Alexander the Great) ने 326 ईसा पूर्व में यहाँ आक्रमण किया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बलोचिस्तान की भौगोलिक स्थिति ने इसे व्यापार और सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण बना दिया।

1.3 इस्लामी युग का आरंभ

सातवीं शताब्दी में अरबों ने बलोचिस्तान पर आक्रमण किया और इस्लाम का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ। बलोच जनजातियों ने धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाया और क्षेत्र इस्लामी खिलाफत का हिस्सा बन गया। इसके बाद बलोचिस्तान में कई स्थानीय राजवंशों और जनजातियों का शासन रहा, जिनमें रिंद, लशारी, बुगती, मरी आदि प्रमुख हैं।

2. मध्यकालीन बलोचिस्तान

2.1 बलोच जनजातियों का उदय

बलोच जनजातियों का इतिहास 10वीं-11वीं शताब्दी से प्रमुखता से मिलता है। बलोच लोग मूलतः ईरान के बलोच क्षेत्र से आए और धीरे-धीरे पाकिस्तान के बलोचिस्तान, सिंध, पंजाब और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में बस गए। बलोच समाज जनजातीय व्यवस्था पर आधारित है, जहाँ सरदारों (Chiefs) का बड़ा महत्व है।

2.2 मुगल और फारसी प्रभाव

16वीं-17वीं शताब्दी में बलोचिस्तान पर मुगलों और फारसी साम्राज्य का प्रभाव रहा। मुगल सम्राट अकबर ने बलोचिस्तान के कुछ हिस्सों को अपने साम्राज्य में शामिल किया, लेकिन बलोच जनजातियों ने हमेशा अपनी स्वायत्तता बनाए रखने की कोशिश की। फारसी शासकों ने भी यहाँ कई बार आक्रमण किए, जिससे बलोचिस्तान का राजनीतिक परिदृश्य लगातार बदलता रहा।

3. ब्रिटिश काल और बलोचिस्तान

3.1 ब्रिटिश राज की स्थापना

19वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बलोचिस्तान की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए यहाँ हस्तक्षेप शुरू किया। 1839 में ब्रिटिश सेना ने बलोचिस्तान के कलात राज्य पर आक्रमण किया और यहाँ का राजनीतिक नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद बलोचिस्तान को ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना दिया गया, जिसमें कलात, मकरान, लासबेला और खारान जैसी रियासतें शामिल थीं।

3.2 ब्रिटिश प्रशासन और बलोच असंतोष

ब्रिटिश शासन के दौरान बलोचिस्तान को 'चीफ कमिश्नर प्रांत' और 'एजेंसी' के रूप में विभाजित किया गया। ब्रिटिश प्रशासन ने बलोच सरदारों को सीमित अधिकार दिए, लेकिन स्थानीय जनता में असंतोष बना रहा। कई बार बलोच सरदारों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किए, जिनमें 1898, 1915 और 1940 के विद्रोह प्रमुख हैं। ब्रिटिश प्रशासन ने हमेशा बलोचिस्तान को एक बफर ज़ोन के रूप में देखा, ताकि अफगानिस्तान और ईरान की ओर से आने वाले खतरों से भारत की सुरक्षा की जा सके।

4. स्वतंत्रता और बलोचिस्तान का पाकिस्तान में विलय

4.1 1947: भारत-पाकिस्तान विभाजन और बलोचिस्तान

1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तब बलोचिस्तान की स्थिति बेहद जटिल थी। बलोचिस्तान में चार प्रमुख रियासतें थीं - कलात, मकरान, लासबेला और खारान। इनमें से तीन रियासतों (मकरान, लासबेला, खारान) ने पाकिस्तान में विलय स्वीकार कर लिया, लेकिन कलात के खान (मीर अहमद यार खान) ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा की और अपनी संसद बनाई।

4.2 कलात का पाकिस्तान में विलय

पाकिस्तान ने कलात पर दबाव डाला और मार्च 1948 में कलात को अपने में मिला लिया। इस विलय को बलोच नेताओं ने जबरदस्ती और राजनीतिक हेरफेर बताया। इसके विरोध में बलोच नेताओं ने विद्रोह शुरू कर दिया, जिसे पाकिस्तान ने सैन्य बल से दबा दिया। यही से बलोचिस्तान और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी की नींव पड़ी।

5. पाकिस्तान में बलोचिस्तान: दमन, विद्रोह और असंतोष

5.1 बलोच विद्रोहों का इतिहास

पाकिस्तान बनने के बाद बलोचिस्तान में कई बार विद्रोह हुए। पहला विद्रोह 1948 में कलात के विलय के तुरंत बाद हुआ। दूसरा बड़ा विद्रोह 1958-59 में हुआ, जब पाकिस्तान ने 'वन यूनिट' नीति लागू कर बलोचिस्तान की स्वायत्तता खत्म कर दी। तीसरा विद्रोह 1962-63 में और चौथा 1973-77 में हुआ, जब प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने बलोच नेताओं की सरकार को बर्खास्त कर दिया। 2000 के दशक में भी बलोच विद्रोह और सैन्य कार्रवाइयाँ जारी रहीं, जिनमें हजारों लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए।

5.2 पाकिस्तान सरकार की नीतियाँ

पाकिस्तान सरकार ने बलोचिस्तान में संसाधनों के दोहन, राजनीतिक अधिकारों की कमी, और सैन्य दमन की नीति अपनाई। बलोच नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान बलोचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों (गैस, खनिज, तांबा, सोना) का शोषण करता है, लेकिन स्थानीय जनता को उसका लाभ नहीं मिलता। साथ ही, बलोच संस्कृति, भाषा और पहचान को दबाने की कोशिशें भी असंतोष का कारण बनी हैं।

6. बलोचिस्तान और भारत: ऐतिहासिक और वर्तमान संबंध

6.1 ऐतिहासिक संबंध

बलोचिस्तान और भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से सीमित रहे हैं। प्राचीन काल में व्यापार और संस्कृति के आदान-प्रदान के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से बलोचिस्तान हमेशा स्वतंत्र या अन्य साम्राज्यों के अधीन रहा।

6.2 आधुनिक भारत और बलोचिस्तान

21वीं सदी में जब बलोच राष्ट्रवाद और मानवाधिकार उल्लंघनों की खबरें सामने आईं, तो भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलोचिस्तान के मुद्दे को उठाया। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बलोचिस्तान का उल्लेख किया, जिससे पाकिस्तान में हलचल मच गई। भारत ने बलोच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मंच दिया, लेकिन पाकिस्तान का आरोप है कि भारत बलोच विद्रोहियों को समर्थन देता है, हालांकि भारत ने हमेशा इसका खंडन किया है।

6.3 रणनीतिक महत्व

बलोचिस्तान का रणनीतिक महत्व भारत के लिए इसलिए भी है क्योंकि यहाँ से पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) संचालित होता है। भारत के लिए बलोचिस्तान में असंतोष का मतलब पाकिस्तान पर दबाव बनाना और अपनी रणनीतिक स्थिति मजबूत करना है।

7. पाकिस्तान और बलोचिस्तान: दुश्मनी के कारण

7.1 राजनीतिक और सांस्कृतिक दमन

पाकिस्तान बनने के बाद से ही बलोच जनता खुद को हाशिए पर महसूस करती है। संसाधनों के बंटवारे, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक अधिकारों की कमी ने बलोचिस्तान और पाकिस्तान के बीच दूरी बढ़ाई है।

7.2 सैन्य दमन और मानवाधिकार उल्लंघन

पाकिस्तान सरकार ने बलोच आंदोलनों को हमेशा सैन्य बल से दबाने की कोशिश की है। हजारों बलोच कार्यकर्ता, नेता और आम नागरिक 'लापता' हो गए हैं, जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। मानवाधिकार संगठनों ने बलोचिस्तान में बड़े पैमाने पर हत्याओं, यातनाओं और जबरन गायब किए जाने की घटनाओं की रिपोर्ट दी है।

7.3 आर्थिक शोषण

बलोचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा, लेकिन सबसे कम विकसित प्रांत है। यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो होता है, लेकिन स्थानीय जनता को उसका लाभ नहीं मिलता। इससे असंतोष और विद्रोह की भावना और गहरी होती गई है।

8. बलोचिस्तान का वर्तमान परिदृश्य

8.1 बलोच राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता की मांग

आज भी बलोचिस्तान में स्वतंत्रता और स्वायत्तता की मांग जारी है। बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और अन्य संगठनों ने पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ रखा है। हाल के वर्षों में विद्रोह और हमलों की संख्या बढ़ी है, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता बनी हुई है।

8.2 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

मानवाधिकार संगठनों और कुछ देशों ने बलोचिस्तान में हो रहे दमन की आलोचना की है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलोचिस्तान का मुद्दा उठाया है, लेकिन अभी तक कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं हुआ है।

8.3 चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और बलोचिस्तान

CPEC के तहत ग्वादर पोर्ट और अन्य परियोजनाएँ बलोचिस्तान में चल रही हैं, लेकिन बलोच विद्रोही इन परियोजनाओं को 'कब्जा' मानते हैं और इन पर हमले करते हैं। इससे पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए सुरक्षा चुनौती बढ़ गई है।

बलोचिस्तान का इतिहास संघर्ष, असंतोष और स्वतंत्रता की आकांक्षा से भरा है। पाकिस्तान के साथ उसका रिश्ता हमेशा तनावपूर्ण रहा है, और भारत के साथ उसका संबंध मुख्यतः रणनीतिक और मानवाधिकार के मुद्दों पर केंद्रित रहा है। बलोचिस्तान की स्थिति आज भी दक्षिण एशिया की राजनीति में एक संवेदनशील मुद्दा बनी हुई है।

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