अंकिता भंडारी हत्याकांड: कोटद्वार कोर्ट ने सुनाया फैसला, तीनों दोषियों को उम्रकैद की सज़ा | जानिए पूरी कहानी

उत्तराखंड की शांत वादियों में, जहां आमतौर पर प्रकृति की खूबसूरती और आध्यात्मिक शांति की चर्चा होती है, वहां एक 22 वर्षीय युवती की दर्दनाक हत्या ने पूरे राज्य ही नहीं बल्कि देश को हिला कर रख दिया। यह कहानी है अंकिता भंडारी की, जिसकी मौत एक साजिश, सत्ता, और सामाजिक सड़ांध का पर्दाफाश बन गई। 18 सितंबर 2022 को हुई इस हत्या ने न्याय, संवेदना और स्त्री-सुरक्षा पर अनेक सवाल खड़े किए। इस लेख में हम इस पूरे प्रकरण का गहराई से विश्लेषण करेंगे, घटना की पृष्ठभूमि, जांच प्रक्रिया, कोर्ट का फैसला, राजनीतिक प्रभाव, जन-आंदोलन और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से बात करेंगे।



प्रारंभिक पृष्ठभूमि

अंकिता भंडारी, पौड़ी जिले की निवासी, एक सामान्य परिवार से थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उसने यमकेश्वर ब्लॉक स्थित वनतरा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करना शुरू किया। यह रिसॉर्ट पुलकित आर्य नामक व्यक्ति के अधीन था, जो उत्तराखंड की राजनीति में रसूख रखने वाले भाजपा नेता विनोद आर्य का पुत्र है।

अंकिता को नौकरी के दौरान अपने बॉस और अन्य स्टाफ सदस्यों से लगातार दबाव झेलना पड़ा। आरोप था कि उस पर गेस्ट के साथ ‘स्पेशल सर्विस’ यानी यौन सेवा देने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। जब उसने इसका विरोध किया, तो उसकी आवाज को दबाने के लिए साजिश रची गई, और अंततः उसकी हत्या कर दी गई। यह घटना उस समाज को आईना दिखा गई जो महिलाओं की सुरक्षा, गरिमा और सम्मान की बात करता है, लेकिन वास्तविकता में उनके साथ क्या होता है, यह इस घटना ने उजागर कर दिया।

घटना की रात

18 सितंबर 2022 की रात को अंकिता को उसके ऑफिस के दो अन्य सहयोगियों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता के साथ देखा गया। उस रात रिजॉर्ट में कई गेस्ट थे और उस पर कथित रूप से एक वीआईपी गेस्ट को खुश करने का दबाव बनाया गया था। जब उसने इसका विरोध किया, तो विवाद बढ़ गया। बाद में इन तीनों आरोपियों ने मिलकर उसे एक सुनसान जगह पर ले जाकर चीला नहर में धक्का दे दिया।

इसके बाद तीनों अभियुक्त अपने-अपने घर चले गए और सामान्य दिनचर्या के अनुसार जीवन जीने लगे। जब अंकिता घर नहीं लौटी, तो उसके माता-पिता ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। शुरुआत में पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन जब स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया पर विरोध तेज हुआ, तब पुलिस हरकत में आई और छानबीन शुरू की।

जांच और एसआईटी गठन

स्थानीय पुलिस के ढीले रवैये के बाद राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) का गठन किया। टीम ने गहन जांच के बाद 500 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की जिसमें 97 गवाहों को नामित किया गया। चार्जशीट में स्पष्ट रूप से हत्या की योजना, उसका क्रियान्वयन और सबूतों को मिटाने के प्रयासों का उल्लेख किया गया।

एसआईटी की जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। आरोपी पुलकित आर्य ने अपनी राजनीतिक पहुंच और प्रभाव का प्रयोग कर पहले जांच को प्रभावित करने की कोशिश की। लेकिन जब मामला सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया और जनता का आक्रोश सड़क पर उतर आया, तो सरकार को मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी। आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और न्यायिक हिरासत में भेजा गया।


चार्जशीट की प्रमुख बातें

एसआईटी की चार्जशीट में यह बताया गया कि अंकिता पर गलत काम करने का दबाव बनाया जा रहा था। जब उसने मना किया, तो उसे प्रताड़ित किया गया और आखिरकार उसकी हत्या कर दी गई। हत्या के बाद शव को नहर में फेंककर सबूत मिटाने की कोशिश की गई। मोबाइल फोन, सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयान इस केस में अहम साक्ष्य बने।

चार्जशीट के अनुसार:

  • पुलकित आर्य ने अंकिता पर यौन कार्यों का दबाव डाला था
  • अंकिता के मना करने पर उसने सौरभ और अंकित के साथ मिलकर उसकी हत्या की
  • हत्या के बाद सबूत मिटाने के प्रयास किए गए

इन साक्ष्यों के आधार पर मुकदमा चलाया गया और तीनों आरोपियों पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 201 (सबूत नष्ट करना), 354A (यौन उत्पीड़न) और आईटीपीए एक्ट की धारा 3(1)(d) के तहत केस दर्ज किया गया।

कोर्ट की कार्यवाही और फैसला

करीब ढाई वर्षों तक यह केस कोर्ट में चला। अभियोजन पक्ष ने 47 गवाहों को पेश किया जिनमें अंकिता की मां, पिता, सहकर्मी, फोरेंसिक एक्सपर्ट्स और पुलिस अधिकारी शामिल थे। कोर्ट ने सभी गवाहों और सबूतों का संज्ञान लेते हुए अंततः 30 मई 2025 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

कोटद्वार स्थित अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने अपने फैसले में तीनों अभियुक्तों को निम्नलिखित सजा सुनाई:

  1. पुलकित आर्य को धारा 302 के तहत कठोर आजीवन कारावास और ₹50,000 का जुर्माना, धारा 201 में 5 साल का कारावास और ₹10,000 जुर्माना, धारा 354A में 2 साल का कारावास और ₹10,000 जुर्माना, और आईटीपीए एक्ट के तहत 5 साल का कारावास और ₹2,000 जुर्माना
  2. सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को धारा 302 के तहत कठोर आजीवन कारावास और ₹50,000 जुर्माना, धारा 201 में 5 साल कारावास और ₹10,000 जुर्माना, और आईटीपीए एक्ट के तहत 5 साल कारावास और ₹2,000 जुर्माना

साथ ही अदालत ने मृतका के परिवार को ₹4 लाख का प्रतिकर देने का आदेश दिया।

 जनभावनाएं और सामाजिक प्रभाव

इस केस को लेकर देशभर में भारी आक्रोश देखने को मिला। सोशल मीडिया पर #JusticeForAnkita ट्रेंड करता रहा। लोग सड़कों पर उतरे, मोमबत्तियाँ जलाई गईं और सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग की गई। पीड़िता के परिवार को न केवल समाज से सहानुभूति मिली, बल्कि उनके साहस और संघर्ष को भी सराहा गया। इस केस ने कई सामाजिक पहलुओं पर भी रोशनी डाली:

  • महिलाओं की सुरक्षा: एक बार फिर यह सवाल उठा कि महिलाएं वर्कप्लेस पर कितनी सुरक्षित हैं?
  • राजनीतिक दखल: कैसे रसूखदार लोग कानून से बचने की कोशिश करते हैं?
  • मीडिया की भूमिका: किस तरह मीडिया ने इस केस को जीवित रखा और न्याय की मांग को हवा दी?
  • न्यायिक प्रक्रिया की गति: आखिरकार जनता की आवाज और सोशल मीडिया दबाव ने केस को गति दी।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस केस ने राजनीतिक गलियारों में भी उथल-पुथल मचा दी। विपक्ष ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि आरोपियों को शुरू में बचाने की कोशिश की गई। कांग्रेस प्रवक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड महिला अपराध के मामलों में लगातार अग्रणी बना हुआ है, लेकिन सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।

भाजपा सरकार ने मामले को लेकर कई बार सफाई दी और कहा कि कानून अपना काम कर रहा है। लेकिन जनता का एक वर्ग अब भी यही मानता है कि अगर सामाजिक दबाव और मीडिया का दखल न होता, तो शायद यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाता।

 पीड़िता के परिवार की उम्मीदें और दर्द

अंकिता के माता-पिता ने इस फैसले को न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि जब तक हत्यारों को फांसी की सजा नहीं मिलेगी, तब तक उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी। उनकी यह भावना उस समाज की पीड़ा का प्रतिनिधित्व करती है जो अब अपराध के खिलाफ कठोरतम सजा की मांग कर रहा है।

क्या यह सजा पर्याप्त है?

यह एक बड़ा सवाल है कि क्या उम्रकैद की सजा ऐसी दरिंदगी के लिए पर्याप्त है? क्या इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अब फांसी जैसी सजा अनिवार्य नहीं होनी चाहिए? कानून के जानकारों का मानना है कि यह फैसला उदाहरण बनेगा, लेकिन समाज में व्याप्त भय और असुरक्षा की भावना को समाप्त करने के लिए अभी और प्रयास करने होंगे।

भविष्य की राह

इस घटना ने सरकार, न्यायपालिका, प्रशासन, और समाज सभी को झकझोर दिया है। अब जरूरी है कि:

  • महिला कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सभी प्राइवेट प्रतिष्ठानों में विशेष निगरानी हो
  • कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न निवारण समिति को सक्रिय किया जाए
  • कानून में संशोधन कर यौन अपराधियों को शीघ्र सजा दिलाने का प्रावधान हो
  • रसूखदार लोगों के मामलों में निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाए
  • सोशल मीडिया के जनदबाव को निगेटिव नहीं बल्कि न्याय के लिए पॉजिटिव टूल के रूप में देखा जाए

अंकिता भंडारी हत्याकांड ने हमारे समाज की कई परतों को उजागर किया है। यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, यह उस सोच की हत्या थी जिसमें एक महिला को वस्तु की तरह देखा जाता है। यह उस न्याय प्रणाली की परीक्षा थी, जिसे अक्सर धीमा और भेदभावपूर्ण बताया जाता है। यह उन तमाम महिलाओं की चीख थी जो प्रताड़ना सहती हैं लेकिन आवाज नहीं उठा पातीं।

आज जब अदालत ने अपना फैसला सुनाया है, तब यह न केवल न्याय का पल है बल्कि आत्मनिरीक्षण का भी समय है। क्या हम एक ऐसा समाज बना पाएंगे जहां कोई अंकिता दोबारा न मारी जाए? क्या हम कानून को इतना मजबूत बना पाएंगे कि अपराधी चाहे जितना भी रसूखदार हो, वह बच न सके?

अंकिता अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी कहानी हर उस लड़की की आवाज बन चुकी है जो न्याय चाहती है, सम्मान चाहती है, और सुरक्षित जीवन चाहती है।

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