Historical Background of Uttarakhand: Uttarakhand (पूर्व में उत्तरांचल) भारत का एक पर्वतीय राज्य है, जिसका इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। पौराणिक ग्रंथों में इस क्षेत्र को Kedarkhand, Manaskhand और Himavant के नाम से जाना जाता था। यहाँ गढ़वाल और कुमाऊँ दो प्रमुख संभाग रहे हैं, जिन पर अलग-अलग राजवंशों ने शासन किया। पाषाण युग से भी पहले यहाँ मानव सभ्यता के प्रमाण मिलते हैं और इसे हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों के रूप में भी जाना जाता है।
Gadhaval Kingdom and Tehri Riyasat
Gadhaval के ऐतिहासिक राजा Ajaypal और उनके वंशजों ने 15वीं शताब्दी के अंत में एक एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी चांदपुर से श्रीनगर होते हुए अंततः टिहरी (Tehri) स्थानांतरित हुई। १९वीं शताब्दी में, गोरखाओं के आक्रमण के बाद, अंग्रेजों की सहायता से राजा Sudarshan Shah ने टिहरी रियासत (Tehri Riyasat) की स्थापना की और इसलिए उन्हें Tehri Riyasat का संस्थापक माना जाता है।
Sudarshan Shah (शासनकाल: 1815-1859) ने अपनी राजधानी टिहरी (Tehri) को बनाया और अंग्रेजों के साथ मिलकर गढ़वाल को गोरखाओं से मुक्त कराया। वे Gadhaval के 55वें राजा और पंवार (Panwar) वंश के थे।
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Chronology of Tehri Kings
राजा | शासनकाल | प्रमुख योगदान/संदर्भ |
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सुदर्शन शाह | 1815-1859 | टिहरी रियासत की स्थापना, अंग्रेजों से संबंध बनाए |
भवानी शाह | 1859-1871 | शांतिपूर्ण शासन |
प्रताप शाह | 1871-1886 | राजधानी प्रतापनगर में बनाई |
कीर्ति शाह | 1886-1913 | राजधानी कीर्तिनगर में बनाई |
नरेंद्र शाह | 1913-1946 | राजधानी नरेंद्रनगर में बनाई |
मानवेंद्र शाह | 1946-1949 | 1949 में टिहरी का उत्तर प्रदेश में विलय |
१९४९ में, अंतिम राजा Manvendra Shah ने भारतीय संघ में अपने राज्य का विलय कर दिया और टिहरी, उत्तर प्रदेश का एक जिला बन गया। आजादी के बाद, राजतंत्र समाप्त हो गया और शाही परिवार के सदस्यों के पास राजनीतिक शक्ति नहीं रही। टिहरी गढ़वाल का वर्तमान राजा/राजपरिवार
१९४९ के बाद, टिहरी गढ़वाल की Royal Family के पास कोई शासकाधिकार (ruling power) नहीं बचा। आज, पंवार वंश के वंशज नरेंद्र नगर (Narendra Nagar) और टिहरी (Tehri) में रहते हैं, लेकिन उनके पास कोई औपचारिक राजनैतिक दर्जा (official status) नहीं है। अगर कोई वर्तमान राजा (Current King of Tehri Garhwal) के बारे में पूछे, तो उत्तराखंड में अब कोई राजा या सम्राट नहीं है। Manvendra Shah के बाद, यह राजघराना (royal lineage) एक परंपरागत, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के तौर पर जीवित है, लेकिन किसी के पास King का दर्जा नहीं रहा।