उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित टिहरी बांध परियोजना के पुनर्वास विभाग से जुड़े भू-आवंटन घोटाले की खबरें पिछले कुछ वर्षों से लगातार सामने आ रही हैं। टिहरी बांध के विस्थापित परिवारों को आवासीय भूमि आवंटन में भ्रष्टाचार, दोहरा आवंटन, कथित फर्जीवाड़ों, और अधिकारियों के कथित संलिप्तता को लेकर चिन्ताजनक रिपोर्टें सामने आई हैं। हाल ही में, देहरादून जिला प्रशासन ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए विजिलेंस और सीबीसीआईडी से अंतर विभागीय जांच की सिफारिश शासन को भेजी है। इस रिपोर्ट में हम विस्तार से इस भू-आवंटन घोटाले से जुड़ी सभी पहलुओं, विस्थापितों के दर्द, प्रशासनिक प्रतिक्रिया, और भविष्य में सुधार की संभावनाओं को समझेंगे।
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उत्तराखंड देहरादून जिलाधिकारी सविन बंसल |
टिहरी बांध परियोजना और पुनर्वास का संक्षिप्त इतिहास
टिहरी बांध परियोजना 1970-80 के दशक में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) की सबसे बड़ी पावर जनरेटिंग परियोजनाओं में से एक थी। इस बांध से बनने वाली जलविद्युत परियोजना ने पूरे क्षेत्र के विकास में योगदान दिया, लेकिन इसके लिए लगभग 4,400 से अधिक परिवारों को विस्थापित होकर दूसरी जगह पुनर्वासित होना पड़ा। सरकार ने विस्थापित परिवारों के लिए आवासीय भू-खण्ड, मकान, तथा उचित सुविधा मुहैया कराने का आश्वासन दिया था।
हालांकि, दशकों से पुनर्वास कार्य पूर्ण नहीं हो पाए, और आज भी कई विस्थापित परिवारों के पास अपने मकान और जमीन का कब्जा सही ढंग से नहीं है। प्रशासन की ओर से भूमि आवंटन संबंधी धोखाधड़ी, स्वामित्व संबंधी विवाद, और भ्रष्टाचार के अनेक मामले सामने आए हैं, जो टिहरी के विस्थापितों के जीवन में लंबे समय तक निराशा और संघर्ष लेकर आए हैं।
भू-आवंटन घोटाले के प्रमुख प्रकरण
पुलमा देवी प्रकरण: यह मामला टिहरी भू-आवंटन घोटाले में सबसे चर्चित प्रकरणों में से एक है। देहरादून के शास्त्रीपुरम एन्क्लेव रायपुर रोड की रहने वाली पुलमा देवी ने 2007 में दिनेश रावत से एक भूखण्ड खरीदा था, जिसके दाखिल-खारिज का रजिस्ट्रेशन भी उनके नाम पर हो चुका था। हालांकि कुछ ही वर्षों बाद, एक अन्य महिला राजरानी (पश्चिम रोशन लाल की पत्नी) ने उसी भूखण्ड पर जबरन कब्जा कर लिया।
जांच में यह तथ्य सामने आया कि चंदरू पुत्र अमरू नामक व्यक्ति को उक्त जमीन दोबारा विभाग द्वारा आवंटित की गई थी। यह दोहरा आवंटन 2007 और फिर 2019 में हुआ था। इस गलत कार्यवाही से स्पष्ट होता है कि विभागीय रिकॉर्डों में गंभीर गड़बड़ी और भ्रष्टाचार है, जिसके कारण एक ही भूखंड को दो से अधिक व्यक्तियों के नाम पर प्रविष्ट कर दिया गया।
यह मामला जन दर्पण (जनता दर्शन) कार्यक्रम के दौरान जिलाधिकारी के सामने दर्ज हुआ और इसके बाद प्रशासन ने सख्त जांच का आदेश दिया।
सुमेर चंद, आशीष चौहान आदि के विवादित भू-खण्ड
सुमेर चंद पुत्र सुंदर लाल तथा अन्य व्यक्ति जिन्होंने विभिन्न जगहों पर टिहरी बांध पुनर्वास विभाग से प्राप्त भूमियों में कब्जा विवाद बताया। कुछ भूखंडों पर जहां विभागीय रिकॉर्ड में किसी व्यक्ति का नाम था, वहीं वास्तविक कब्जाधारी कोई और था।
इसी प्रकार अजय चौहान (दिल्ली) द्वारा दी गई शिकायत में बताया गया कि पुर्नवास स्थल अजबपुर कला में 2001 और 2005 में कब्जे की दोहरी व्यवस्था पाई गई, जहां एक भू-खण्ड एक से अधिक बार विभिन्न व्यक्तियों को आवंटित कर दिया गया।
यह समाज में विश्वास की कमी और प्रशासनिक तंत्र की कमज़ोरी को उजागर करता है।
घोटाले के कारण और प्रणालीगत खामियाँ
टिहरी बांध भू-आवंटन घोटाले के पीछे कुछ प्रमुख कारण और खामियाँ हैं, जो इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें शामिल हैं:
1. अस्पष्ट और पुराना रिकॉर्ड मैनेजमेंट
कई बार भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और डिजिटल रिकॉर्डिंग के अभाव में भूखंडों के दस्तावेजों का उचित रखरखाव नहीं है, जिससे जमीनों का दोहरा आवंटन हो जाता है।
2. अधिकारियों और दलालों की मिलीभगत
भ्रष्ट अफसरों द्वारा भूखंडों के आवंटन में अनियमितताएँ की जाती हैं, जो फर्जी दस्तावेज बनवाकर बारीकी से खेल खेलते हैं।
3. सामान्य जनता की जागरूकता का अभाव
विस्थापित परिवारों और आम नागरिकों में भूमि के अधिकारों और दस्तावेजों की पूरी समझ का अभाव तथा सरकारी प्रणालियों की जटिलता भी समस्या को गहरा करती है।
4. कमज़ोर लोक शिकायत प्रणाली
शिकायत निवारण या जनता दर्शन जैसे प्लेटफॉर्म प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाते हैं, जिससे लंबित मामलों की रोकथाम नहीं हो पाती।
5. समीक्षा और निगरानी तंत्र की कमी
भूमि आवंटन की प्रक्रिया की नियमित समीक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाला कोई मजबूत तंत्र नहीं है।
प्रशासन की सख्त कार्रवाई और जांच की सिफारिशें
प्रदेश की राज्य सरकार तथा जिला प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए विशेष जांच दल की स्थापना और विजिलेंस/सीबीसीआईडी जांच की सिफारिश की है। जिलाधिकारी सविन बंसल ने कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, और सभी प्रकार के फ़र्जीवाड़े तथा भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध न्यायालयीन कार्रवाई की जाएगी।
मुख्य कार्रवाई के तहत:
- पुनर्वास विभाग के अधीक्षण अभियंता के वाहन को जब्त करना।
- दोहरे आवंटन वाले भू-खण्डों की गहन पुलिस जांच संभव बनाना।
- विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित कर उनके खिलाफ कार्रवाई।
- विस्थापितों को उचित लाभ दिलाने के लिए पुनर्वास कार्य प्रगति में गति लाना।
- भू-आवंटन की प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाना।
विस्थापितों की कहानी – भू-आवंटन विवादों के बीच जीवन संघर्ष
टिहरी बांध परियोजना से विस्थापित परिवारों ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नए घर बसाने और पुनर्वास योजनाओं पर निर्भर होकर बिताया। जमीन और मकान न मिलने की परेशानी ने वित्तीय संकट, सामाजिक तनाव और मानसिक दबाव बढ़ा दिया है। भू-आवंटन विवादों और फर्जीवाड़ों के कारण बहुत से परिवार आज भी मानवीय बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित हैं।
कई बार महिलाओं को अपने परिवार और जमीन के लिए बिहार से देहरादून, टिहरी के सरकारी कार्यालयों में दर्जनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। बुजुर्ग परिवार, बच्चे जो स्कूल जाना चाहते हैं, वो सभी असुरक्षा, अनिश्चितता और न्याय की मांग में थक चुके हैं।
भविष्य की दिशा: सुधार और समाधान
इस जटिल मसले का समाधान प्रशासनिक सुधार, डिजिटलरण और जनता की भागीदारी से ही संभव है। कुछ प्रस्तावित कदम हैं:
डिजिटल रिकॉर्डिंग: सभी भू-खण्डों का GIS पर ऑनलाइन रिकॉर्डिंग एवं वास्तविक कब्जेदारों की पहचान सुनिश्चित करें।
पारदर्शिता एवं मॉनिटरिंग: हर आवंटन प्रक्रिया से पहले व्यापक पारदर्शिता प्रणाली लागू करके मोबाइल/ईमेल से पक्षकारों को सूचित किया जाए।
जनसुनवाई और शिकायत निवारण: जनता दर्शन कार्यक्रमों में पुनर्वास विभाग को प्राथमिकता देते हुए तत्काल शिकायत निवारण का प्रावधान करें।
कड़े दंडात्मक प्रावधान: भ्रष्ट्र अधिकारियों और फर्जीवाड़े में संलिप्त दूसरे व्यक्तियों को ट्रांसपेरेंसी एक्ट के तहत दो-दो कानूनी धाराओं में सजा मुकर्रर करें।
विस्थापितों के लिए जागरूकता: भूमि अधिकारों, दस्तावेजों की जानकारी और शिकायत करने के तरीकों की व्यापक लोक जागरूकता अभियानों का आयोजन।
टिहरी बांध पुनर्वास विभाग में हुए भू-आवंटन घोटाले ने न केवल विस्थापित परिवारों का विश्वास डिगाया है, बल्कि शासन-प्रशासन की जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न भी खड़ा किया है।
जिला प्रशासन की पहल सकारात्मक संकेत है, पर यह जरूरी है कि जांच निष्पक्ष, गहन और शीघ्र सम्पन्न हो। इसके अतिरिक्त, भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो इसके लिए तत्काल सुधार और डिजिटल तकनीक का समुचित उपयोग आवश्यक है।