कोलकाता में 23–24 सितंबर, 2025 को हुई मूसलाधार बारिश ने 37 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया।

कोलकाता में 23–24 सितंबर, 2025 को हुई मूसलाधार बारिश ने 37 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस विनाशकारी बारिश और उससे उपजी बाढ़ ने शहर और आसपास के इलाकों को अस्त-व्यस्त कर दिया, बड़ी संख्या में मौतें हुईं और दुर्गा पूजा जैसे ऐतिहासिक पर्व पर संकट खड़ा हो गया.

कोलकाता में मूसलाधार बारिश ने 37 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
कोलकाता में मूसलाधार बारिश ने 37 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया।

कोलकाता में 37 साल की सबसे बड़ी बारिश

कोलकाता में 24 घंटों के भीतर 251.4 मिमी से ज़्यादा बारिश दर्ज हुई—जो 1986 के बाद सबसे ज़्यादा है। कहीं-कहीं आंकड़ा 332 मिमी तक पहुँचा. ये बारिश कोलकाता के इतिहास में एक दिन में हुई छठी सबसे बड़ी बारिश है। पहले सिर्फ एक घंटे में 98 मिमी बारिश हो गई, जिससे पूरा शहर डूब गया. शहर के प्रमुख मार्ग जैसे ईएम बाईपास, एजेसी बोस रोड, सेंट्रल एवेन्यू, पार्क सर्कस, गरियाहाट, बेहाला, कॉलेज स्ट्रीट आदि नदियों में तब्दील हो गए.

इस अभूतपूर्व बारिश का कारण बंगाल की खाड़ी में बना डीप डिप्रेशन और हवाओं व नमी की अप्रत्याशित टक्कर माना गया. IMD (मौसम विभाग) ने इसे 'नियर क्लाउडबर्स्ट' कहा क्योंकि बादल फटने जैसी स्थिति पैदा हो गई थी.

बाढ़ से जनजीवन बेहाल—मौतें व अव्यवस्था

बारिश से कोलकाता के अधिकांश हिस्सों में जलभराव ने विकराल रूप ले लिया। घरों, दुकानों, बाजारों, और रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्सेस में पानी भर गया। कम से कम 11 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से 9 की मौत बिजली के तारों से पानी में करंट आने के कारण हुई. यह बाढ़ सिर्फ पानी की समस्या नहीं रही, बल्कि शहर के प्रशासनिक इंतजाम, ड्रेनेज सिस्टम और विद्युत प्रबंधन की कमियों को उजागर कर गई.

यातायात और परिवहन बुरी तरह प्रभावित हुए—30 फ्लाइट्स रद्द करनी पड़ी, 42 लेट रहीं, मेट्रो और लोकल ट्रेनों की सेवाएं भी रुकीं। स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए। अमेरिकी दूतावास तक ने इस दिन छुट्टी घोषित की.

दुर्गा पूजा पर संकट

कोलकाता की दुर्गा पूजा शहर की सबसे बड़ी सांस्कृतिक उत्सव है, लेकिन इस बारिश ने हजारों पंडालों में पानी भर दिया और कई पंडाल पूरी तरह बर्बाद हो गए. पूजा समितियों और आयोजकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंडालों में पानी निकालने, मूर्तियों और अन्य सामग्रियों को सुरक्षित रखने की बन गई है। गली-मोहल्लों में नाव तैरती दिखीं, बच्चे कागज की नावों से खेलने का सुख भी मनाते रहे, लेकिन घरवालों और आयोजकों के लिए यह बारिश मुश्किलों की बाढ़ थी.

कारण: जलवायु परिवर्तन, शहरी संकट, सरकारी चूक

मौसम विभाग ने साफ किया कि यह क्लाउडबर्स्ट नहीं था बल्कि हवाओं और नमी की टक्कर से उत्पन्न तेज बारिश थी. दरअसल, कोलकाता में पिछले पांच दशकों से मार्च–सितंबर के बीच लगातार बारिश की प्रवृत्ति बदली है। संयुक्त राष्ट्र की 2021 की रिपोर्ट ने पहले ही चेतावनी दी थी कि कोलकाता में छोटी अवधि में तेज बारिश के मामले बढ़ेंगे

शहर का ड्रेनेज सिस्टम, अवैध निर्माण, तालाबों का कम होना—इन कारणों से पानी का रिसाव और जलनिकासी मुश्किल हो गई. कोलकाता नगर निगम के मेयर फिरहाद हकीम ने कहा कि 900 पंप लगातार चलाए लेकिन सिर्फ 6 इंच पानी ही निकल पाया। ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर गंगा की सफाई न करने का आरोप लगाया, वहीं दामोदर वैली कॉर्पोरेशन ने इसे खारिज किया

प्रशासनिक जवाबदेही व राजनैतिक आरोप

बाढ़ और बिजली के तारों से मौत पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विद्युत कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया। विपक्षी दलों ने ड्रेनेज सिस्टम की खामियों को लेकर नगर निगम और राज्य सरकार पर सवाल उठाए। 5639 करोड़ रुपए के बजट में ड्रेनेज और सड़कों के विकास पर खर्च की बात तो थी, लेकिन हकीकत में योजनाएं फेल हो गईं

आगे की स्थिति—आशंका और प्रबंधन

IMD ने 27–28 सितंबर को पुनः तेज बारिश का अलर्ट जारी किया है क्योंकि म्यांमार तट पर बना चक्रवात ओडिशा व बंगाल की ओर बढ़ सकता है. प्रशासन ने नागरिकों को सतर्क रहने को कहा है। मेयर का कहना है कि यदि आगे बारिश न हुई तो हालात सामान्य होने में 12 घंटे लगेंगे.

कोलकाता की बाढ़ ने सिर्फ एक मौसम या पर्व का संकट नहीं खड़ा किया; यह शहरी नियोजन, जलवायु परिवर्तन और सरकारी जवाबदेही की घोर चुनौती है. दुर्गा पूजा के उल्लास को उफनते पानी और तैरती नावों ने मायूस कर दिया, लेकिन यह बारिश एक सबक साबित हुई—अगर लंबे समय तक कोलकाता का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं सुधारा गया, तो अगले बारिश पर्व में संकट और भयावह हो सकता है।

शहर के लोग अपने साहस, प्रशासन अपनी लचरता और वैज्ञानिक दुनिया अपने पूर्वानुमान को लेकर चर्चा में हैं। बहरहाल, फिलहाल कोलकाता की सिटी ऑफ जॉय बोझिल जलप्रलय में अपना उत्सव मनाने की कोशिश कर रही है।

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