उत्तराखंड की गढ़वाल घाटियों में प्राकृतिक रूप से उगने वाला काफल (Kafal Fruit) इन दिनों मैदानों के बाजारों में भी खूब बिक रहा है। इस बार जंगलों में आग न लगने से काफल की अच्छी पैदावार हुई है, जिससे यह फल देहरादून, पौड़ी और ऋषिकेश जैसे शहरी इलाकों तक पहुंच रहा है।
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काफल की धूम |
काफल अपने सुर्ख लाल और बैंगनी रंग, बेरी जैसे आकार और खट्टे-मीठे स्वाद के कारण बेहद लोकप्रिय है। यह न केवल स्वादिष्ट और ताजगी से भरपूर होता है, बल्कि Vitamin C, Antioxidants और कई औषधीय गुणों से युक्त एक सुपरफूड की श्रेणी में आता है।
ग्रामीण युवाओं को मिल रहा स्वरोजगार
अप्रैल और मई के महीनों में काफल की भरपूर पैदावार होती है। पहाड़ी गांवों के युवा और बच्चे जंगलों से इसे एकत्र कर बाजारों में बेचते हैं। इसका सीधा लाभ उन्हें आर्थिक रूप से मिलता है। काफल की बिक्री अब स्थानीय स्वरोजगार (Self Employment) का मजबूत माध्यम बन रही है।
एक स्थानीय ग्रामीण व्यापारी का कहना है, "इस बार काफल खूब मिला है, और बाजार में इसकी अच्छी मांग है। हम इसे 200 से 300 रुपये प्रति किलो तक बेच रहे हैं।"
बढ़ रही है डिमांड, मिल सकता है राष्ट्रीय बाजार
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन सहयोग करें, तो काफल को एक व्यवस्थित कृषि उत्पाद (Organized Forest Produce) के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि राज्य के युवाओं को पहाड़ में ही रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
स्वास्थ्य के लिए लाभकारी
काफल में पाया जाने वाला Vitamin C और एंटीऑक्सीडेंट शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया मजबूत होती है और स्किन भी हेल्दी रहती है।